भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति

मौद्रिक नीति (Monetary Policy) एक ऐसी नीति है जिसे किसी देश का केंद्रीय बैंक, जैसे भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दरों को नियंत्रित करने के लिए उपयोग करता है। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक स्थिरता, रोजगार, और मुद्रास्फीति (महंगाई) पर नियंत्रण करना है। मौद्रिक नीति के दो प्रमुख प्रकार होते हैं:

1. **विस्तारवादी मौद्रिक नीति (Expansionary Monetary Policy):** जब अर्थव्यवस्था में मंदी होती है, तब केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को घटाकर और मुद्रा आपूर्ति बढ़ाकर आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है। इससे उपभोक्ताओं और व्यवसायों को सस्ता ऋण मिलता है, जिससे खर्च और निवेश बढ़ता है।

2. **संकुचनात्मक मौद्रिक नीति (Contractionary Monetary Policy):** जब अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक मुद्रास्फीति होती है, तब केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को बढ़ाकर और मुद्रा आपूर्ति को घटाकर इसे नियंत्रित करने की कोशिश करता है। इससे ऋण महंगा हो जाता है और खर्च कम होता है, जिससे मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाया जाता है।

### मौद्रिक नीति के प्रमुख उपकरण:

1. **ब्याज दरें (Interest Rates):** केंद्रीय बैंक रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, और अन्य प्रमुख दरों को बदलकर आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
2. **नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio - CRR):** बैंकों को अपनी जमा राशि का एक निश्चित हिस्सा केंद्रीय बैंक के पास जमा करना होता है।
3. **खुली बाजार कार्रवाइयां (Open Market Operations):** केंद्रीय बैंक सरकारी बॉन्ड खरीदता या बेचता है जिससे मुद्रा आपूर्ति को प्रभावित किया जा सके।
4. **वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio - SLR):** बैंकों को अपनी जमा राशि का एक निश्चित हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना होता है।

मौद्रिक नीति का सही ढंग से उपयोग करने पर, यह एक देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर और स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

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