Class 12th शीत युद्ध का दौर
Q1. गुटनिरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा तब शीत युद्ध ने देश के विकास में कैसे मदद किया
Answer:- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना तीसरी दुनिया के देशों द्वारा की गई थी ताकि वे शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हो रहे संघर्ष में शामिल न हों और अपने स्वयं के विकास और स्वतंत्रता के लिए एक स्वतंत्र मार्ग अपनाएं। शीत युद्ध के दौरान यह आंदोलन एक तीसरे विकल्प के रूप में उभरा, और इसने विभिन्न तरीकों से इन देशों के विकास में मदद की:
1. **आर्थिक और सैन्य सहायता**: शीत युद्ध के दौरान, दोनों महाशक्तियाँ (अमेरिका और सोवियत संघ) अपनी विचारधाराओं को फैलाने और प्रभाव क्षेत्र बनाने के लिए विकासशील देशों को आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान करती थीं। इससे कई देशों को आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहायता मिली जो उनके बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं में सहायक साबित हुई।
2. **विकास परियोजनाएँ**: कई गुटनिरपेक्ष देशों को महाशक्तियों से विकास परियोजनाओं के लिए धन और तकनीकी विशेषज्ञता मिली। उदाहरण के लिए, भारत को सोवियत संघ से भारी उद्योगों और ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों के लिए सहायता मिली, जबकि अमेरिका ने कृषि और हरित क्रांति में मदद की।
3. **वैश्विक मंच**: गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने विकासशील देशों को एक वैश्विक मंच प्रदान किया जहाँ वे अपने मुद्दों और समस्याओं को उठाकर एक संयुक्त आवाज के रूप में प्रस्तुत कर सकते थे। इसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उनकी स्थिति को मजबूत किया और उन्हें अपनी विकास जरूरतों के लिए समर्थन हासिल करने में मदद की।
4. **स्वतंत्रता और स्वायत्तता**: NAM के सदस्य देशों ने अपने राष्ट्रीय स्वायत्तता और राजनीतिक स्वतंत्रता को बनाए रखने का प्रयास किया। इससे इन देशों को अपनी नीतियों को स्वतंत्र रूप से तय करने और लागू करने का अवसर मिला, जिससे वे अपने विकास के लिए उपयुक्त रास्ते चुन सकें।
5. **विकासशील देशों का सहयोग**: गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया, जिससे ज्ञान, संसाधनों और तकनीकों का आदान-प्रदान हुआ। इस प्रकार, इन देशों ने सामूहिक रूप से अपने विकास की चुनौतियों का सामना करने और समाधानों को साझा करने के लिए एकजुटता दिखाई।
इस प्रकार, शीत युद्ध ने गुटनिरपेक्ष देशों को विभिन्न प्रकार की सहायता और अवसर प्रदान किए, जिससे उनके विकास में महत्वपूर्ण योगदान हुआ।
Q2. वारसा समझौता क्या था ?
Answer:- वारसा समझौता, जिसे वारसा पैक्ट भी कहा जाता है, एक सैन्य गठबंधन था जिसे 14 मई 1955 को सोवियत संघ और उसके पूर्वी यूरोपीय सहयोगियों द्वारा स्थापित किया गया था। यह समझौता नाटो (NATO) के विस्तार और प्रभाव के जवाब में सोवियत संघ द्वारा किया गया था। वारसा समझौते का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों की सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करना और सोवियत संघ की सैन्य और राजनीतिक रणनीति को मजबूत करना था।
### वारसा समझौते के प्रमुख बिंदु
1. **सदस्य देश**: इस समझौते में सोवियत संघ के अलावा पूर्वी यूरोप के सात अन्य देश शामिल थे: अल्बानिया (1968 तक), बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी (जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक), हंगरी, पोलैंड, और रोमानिया।
2. **सैन्य सहयोग**: समझौते के तहत, सदस्य देशों ने एक-दूसरे की सैन्य रक्षा के लिए सहयोग और समन्वय करने का वचन दिया। किसी भी सदस्य देश पर हमले की स्थिति में अन्य सभी सदस्य देश उसकी रक्षा के लिए सामूहिक रूप से कार्रवाई करेंगे।
3. **कमान संरचना**: वारसा समझौते के तहत एक संयुक्त सैन्य कमान की स्थापना की गई, जिसमें मुख्य रूप से सोवियत संघ का प्रभुत्व था। सोवियत सेना के अधिकारी इस कमान में प्रमुख भूमिका निभाते थे।
4. **राजनीतिक उद्देश्य**: समझौते का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य सोवियत संघ के नेतृत्व वाले समाजवादी ब्लॉक की सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना था। इसके माध्यम से सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोपीय देशों पर अपनी पकड़ को मजबूत किया।
5. **प्रतिक्रिया**: यह समझौता नाटो के विस्तार और पश्चिमी यूरोप में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति के प्रति सोवियत संघ की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है। यह शीत युद्ध के दौरान दो मुख्य सैन्य गुटों में से एक था, जो यूरोप को दो ध्रुवों में बांटने का प्रतीक था।
### वारसा समझौते का विघटन
वारसा समझौता 1991 में सोवियत संघ के पतन के साथ समाप्त हो गया। पूर्वी यूरोप में साम्यवादी सरकारों के पतन और सोवियत संघ के विघटन के बाद, इस सैन्य गठबंधन का अस्तित्व समाप्त हो गया और पूर्वी यूरोपीय देशों ने स्वतंत्रता और पश्चिमी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करना शुरू कर दिया।
वारसा समझौता शीत युद्ध के दौरान पूर्वी और पश्चिमी गुटों के बीच तनाव और सैन्य प्रतिस्पर्धा का एक महत्वपूर्ण प्रतीक था।
Q3. महाशक्तियां छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखते थे तीन कारण बताइए
Answer:-महा शक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन कई कारणों से रखती थीं। यहाँ तीन मुख्य कारण दिए गए हैं:
1. **स्ट्रैटेजिक लोकेशन और जियोग्राफिकल एडवांटेज**: कई छोटे देश महत्वपूर्ण भू-स्थान पर स्थित होते हैं, जैसे समुद्री मार्ग, सीमावर्ती क्षेत्र या महत्वपूर्ण जलसंधियाँ। इन देशों के साथ गठबंधन करके महा शक्तियाँ अपने सामरिक और जियोग्राफिकल प्रभाव को बढ़ा सकती हैं। इससे उनकी सुरक्षा और शक्ति का विस्तार होता है।
2. **संसाधनों की उपलब्धता**: छोटे देशों में कई महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हो सकते हैं, जैसे खनिज, तेल, गैस आदि। इन संसाधनों की उपलब्धता के लिए महा शक्तियाँ छोटे देशों के साथ गठबंधन करती हैं, ताकि उन्हें स्थिर और सुरक्षित तरीके से इन संसाधनों तक पहुँच मिल सके।
3. **राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन**: अंतरराष्ट्रीय मंचों पर छोटे देशों का समर्थन प्राप्त करना महा शक्तियों के लिए महत्वपूर्ण होता है। संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों में वोटिंग या अन्य कूटनीतिक मुद्दों पर समर्थन प्राप्त करने के लिए महा शक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन करती हैं। इससे उनके वैश्विक प्रभाव और निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है।
इन कारणों से महा शक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन बनाकर अपने रणनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक हितों को सुरक्षित और प्रबल करती हैं।
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